Saturday, December 26, 2009

ठहर गयी ज़िन्दगी


नावें इरादों की

यादें बैकुंठ गए बाप दादाओं की

घाटों से बंधी

नसीब को रो रही हैं अपने

घास उग आई है चप्पुओं में